भारतीय वास्तुशास्त्र
प्राचीन भारतीय विद्याओं में अनेक ऐसी विद्याऐं है जिनका आज के तकनीकी व आर्थिक युग में महत्त्व अत्यधिक बढ गया है। जैसे योगशास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र, भाषा विज्ञान इत्यादि। उसमें वास्तुशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। आज किसी भी प्रकार के निर्माण में वास्तुशास्त्र के नियमों को भी ध्यान में रखा जाता है, इसका कारण है कि प्राचीन वास्तुशास्त्र के अनुरूप निर्मित भवनादि में शुभ फलों को प्रत्यक्ष देखा गया है और वास्तुशास्त्र के मूल नियमों के विरुद्ध बने हुए भवनों में अशुभ प्रभावों का प्रत्यक्ष प्रमाण देखा गया है। परन्तु आज जो वास्तुशास्त्र तीव्र गति से अपने पांव पसार रहा है वह शुद्ध रूप से भारतीय वास्तुशास्त्र के स्वरूप को प्रस्तुत नहीं कर रहा है। आज के अर्थप्रधान समय में वास्तुशास्त्र शास्त्रीय कम व्यावसायिक अधिक होता जा रहा है। अनेक काल्पनिक विधियों को जोडकर भारतीय वास्तुशास्त्र को विकृत किया जा रहा है। अतः इस पाठ्यक्रम की अत्यधिक आवश्यकता है। जिससे वास्तुशास्त्र को मूल भारतीय स्वरूप में ही प्रस्तुत किया जा सके।
प्राचीन भारतीय विद्याओं में अनेक ऐसी विद्याऐं है जिनका आज के तकनीकी व आर्थिक युग में महत्त्व अत्यधिक बढ गया है। जैसे योगशास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र, भाषा विज्ञान इत्यादि। उसमें वास्तुशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। आज किसी भी प्रकार के निर्माण में वास्तुशास्त्र के नियमों को भी ध्यान में रखा जाता है, इसका कारण है कि प्राचीन वास्तुशास्त्र के अनुरूप निर्मित भवनादि में शुभ फलों को प्रत्यक्ष देखा गया है और वास्तुशास्त्र के मूल नियमों के विरुद्ध बने हुए भवनों में अशुभ प्रभावों का प्रत्यक्ष प्रमाण देखा गया है। परन्तु आज जो वास्तुशास्त्र तीव्र गति से अपने पांव पसार रहा है वह शुद्ध रूप से भारतीय वास्तुशास्त्र के स्वरूप को प्रस्तुत नहीं कर रहा है। आज के अर्थप्रधान समय में वास्तुशास्त्र शास्त्रीय कम व्यावसायिक अधिक होता जा रहा है। अनेक काल्पनिक विधियों को जोडकर भारतीय वास्तुशास्त्र को विकृत किया जा रहा है। अतः इस पाठ्यक्रम की अत्यधिक आवश्यकता है। जिससे वास्तुशास्त्र को मूल भारतीय स्वरूप में ही प्रस्तुत किया जा सके।